सात वर्ष बाद भी निर्भया के दोषियों को सजा न मिल पाना हमारी न्याय व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करता है। ऐसे किसी भी दरिंदे को दोष सिद्ध होने और सजा सुनाए जाने के बाद दया याचिका देने का अवसर ही नहीं मिलना चाहिए। अमर उजाला कार्यालय में अपराजिता अभियान के तहत बुधवार को आयोजित संवाद कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं ने निर्भया मामले में दोषियों की फांसी टलने पर अपना रोष जाहिर किया।
एक माह के अंदर दी जाए फांसी
‘हैवानियत की घटनाओं में दोष सिद्ध होने के एक माह के अंदर दोषियों को फांसी दी जानी चाहिए। सजा में देरी होने से अपराधियों का मनोबल बढ़ता है।’ - अनंत चौधरी, बीटेक के छात्र, आईईटी, विवि
अब सजा में देरी ठीक नहीं
‘सुप्रीम कोर्ट से सजा सुनाए जाने और राष्ट्रपति की ओर से दया याचिका खारिज करने के बाद भी अब सजा में देरी पर ठीक नहीं है।’ - ओमकार सिकरवार, दाऊदयाल में बीकॉम के छात्र
कानून में बदलाव करना चाहिए
‘अंग्रेजों के जमाने के कानून अभी तक चल रहा है। सरकार अनुच्छेद 370 हटाने का कदम उठा सकती है। इस मामले में भी कानून में बदलाव करना चाहिए।’ - गीतम सिसौदिया, एमए इतिहास, विवि
ऐसे अपराध में उम्र न देखी जाए
‘दुष्कर्म के मामले में अपराधियों की उम्र नहीं देखनी चाहिए। उसके कृत्य के आधार पर सजा सुनाई जानी चाहिए। इसके लिए कानून में बदलाव जरूरी है।’ - गौरव शर्मा, पीएचडी के छात्र, विवि
न्याय व्यवस्था पर खड़े हो रहे सवाल
‘निर्भया मामले में दुष्कर्मियों की फांसी टलने से हमारी न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कड़े कानून बनाने चाहिए।’ - प्रभलीन कौर, उत्तम इंस्टीट्यूट में एमबीए की छात्रा