सूरजकुंड मेले में दिखी हिमाचली लोक संस्कृति की झलक

सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले की चौपाल पर बुधवार को थीम स्टेट हिमाचल प्रदेश की लोक संस्कृति की झलक देखने को मिली। हिमाचली कलाकारों ने शिव स्तुति, देवी की उपासना, त्योहार और सामाजिक सौहार्द की भावना को प्रस्तुत किया। इसके अलावा देश-विदेश के कलाकारों ने संस्कृतियों की प्रस्तुति दी। वहीं शाम को गायिका आकांक्षा सैनी ने अपनी प्रस्तुति से समां बांधा। मेले के पांचवें दिन परिसर में जगह-जगह युवाओं की टोलियां नगाड़ा और बीन पार्टियों पर नाचती और मस्ती करती नजर आई। वाद्यों की धुन पर पहाड़ी प्रदेश के महिला एवं पुरुष कलाकारों ने अपने नृत्य और लोकगीतों की मस्ती से दर्शकों की खूब वाहवाही लूटी। सिरमौर, हिमाचल प्रदेश से आए कलाकारों ने बुडाह नृत्य प्रस्तुत किया। दिवाली के दौरान देवता जब मंदिर से बाहर आते हैं, तो उनके लिए यह नृत्य किया जाता है। इस दौरान जंगली जानवरों की वेशभूषा बनाकर संदेश दिया जाता है कि जंगल और जंगली जीवों को बचाने की जरूरत है। इसके अलावा कुल्लू का दशहरा, मिंजर मेला, लवी का मेला और शिव शक्ति के महत्व को दर्शाते हुए प्रस्तुतियां दी गईँ। वहीं हरियाणा, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश, मथुरा, उत्तर प्रदेश से आए कलाकारों ने भी लोकनृत्यों की प्रस्तुति दी। चौपाल पर मेडागास्कर, मालावी, तंजानिया, कंबोडिया, किर्गिस्तान, मोजांबिक, तजाकिस्तान आदि देशों के कलाकारों ने प्रस्तुति देकर अपने देश की लोक कला की छाप छोड़ी। शाम को आयोजित सांस्कृतिक संध्या में गायिका आकांक्षा सैनी ने बिन तेरे सनम, मर मिटेंगे हम, आ मेरी जिंदगी..., सात समुंदर पार मैं तेरे पीछे-पीछे आ गई..., संदली-संदली नैना विच तेरा नाम जैसे मधुर गीतों से समा बांध दिया।